हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,यज़्द प्रांत में महिला मदरसों की प्रबंधकों ने कहा,छात्राओं की सही परवरिश बहुत ज़रूरी है और मदरसों के प्रबंधकों का सबसे अहम मकसद यह होना चाहिए कि वे इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार तलबा को तैयार करें।
मदरसों का सबसे ज़रूरी मकसद यह है कि वे ऐसे छात्र और छात्राएं (तलबा) तैयार करें जो इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार हों यानी सोचने-समझने वाले, समझदार और समाज के लिए फायदेमंद लोगो हैं।
अच्छे नतीजे के लिए दोनों तरफ से मेहनत चाहिए शिक्षक को सक्रिय होना चाहिए और छात्र को सीखने के लिए तैयार होना चाहिए।उन्होंने कहा कि खुदा ने इंसान के विकास के लिए इस दुनिया को खास बनाया है, ताकि इंसान इसमें तरक्की कर सके और अपनी काबिलियत को उभार सके।
अगर इंसान को सिर्फ आँख-कान नाक के ज़रिए तालीम दी जाए और उसे सोचने की आदत न डाली जाए, तो वह सिर्फ मौज-मस्ती और आसानी की तलाश करेगा। ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जो बिना दिमाग लगाए चल रही है और यही एक चिंता की बात है।
आजकल के तलबा लंबी भाषणों या भारी किताबों से दूर भागते हैं, इसलिए उन्हें छोटी-छोटी अच्छी कहानियों और प्रेरणादायक उदाहरणों से सिखाना चाहिए। उन्हें सोचने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि आज की सबसे बड़ी कमी यही है लोग सोचते नहीं।
किताबें ऐसी होनी चाहिए जो तलबा को सोचने पर मजबूर करें, न कि उन्हें सिर्फ रटने की मशीन बना दें।उन्होंने कहा कि नौजवानों का दिल एक बहुत कीमती अमानत है, और उनकी परवरिश ऐसे होनी चाहिए कि वे अपने टीचरों से भी आगे सोच सकें।बैठक में मौजूद प्रिंसिपल्स और मैनेजर्स ने अपनी परेशानियाँ भी बताईं, और इब्राहीमीयन साहब ने उनके सवालों के जवाब दिए।
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